भारत के महापुरूष तथा उनकी जीवनी - 1
गौतम बुद्ध
नाम – सिद्धार्थ गौतम बुद्ध , जन्म – 563 ईसा पूर्व लुम्बिनी नेपाल , मृत्यु – 483 ईसा पूर्व कुशीनगर, शादी – राजकुमारी यशोधरा , बच्चें – एक पुत्र, राहुल , पिता का नाम – शुद्धोदन (एक राजा और कुशल शासक) , माता का नाम – माया देवी (महारानी), बौद्ध धर्म की स्थापना – चौथी शताब्दी के दौरान
वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ वटवृक्ष के नीचे ध्यानपूर्वक अपने ध्यान में बैठे थे. गाँव की एक महिला नाम सुजाता का एक पुत्र हुआ था, उस महिला ने अपने पुत्र के लिये उस वटवृक्ष से एक मन्नत मांगी थीं जो मन्नत उसने मांगी थी वो उसे मिल गयी थी और इसी ख़ुशी को पूरा करने के लिये वह महिला एक सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर उस वटवृक्ष के पास पहुंची थीं.
महावीर
महावीर जैन धर्म में वर्तमान अवसर्पिणी काल के चौंबीसवें तीर्थंकर है। भगवान महावीर का जन्म करीब ढाई हजार साल पहले (ईसा से 599 वर्ष पूर्व), वैशाली के गणतंत्र राज्य क्षत्रिय कुण्डलपुर में हुआ था। महावीर को 'वर्धमान', वीर', 'अतिवीर' और 'सन्मति' भी कहा जाता है। तीस वर्ष की आयु में गृह त्याग करके, उन्होंने एक लँगोटी तक का परिग्रह नहीं रखा। हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य, अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जो है- अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय) और ब्रह्मचर्य। सभी जैन मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका को इन पंचशील गुणों का पालन करना अनिवार्य है| महावीर ने अपने उपदेशों और प्रवचनों के माध्यम से दुनिया को सही राह दिखाई और मार्गदर्शन किया।
सम्राट अशोक
अशोक महान पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य (राजा प्रियदर्शी देवताओं का प्रिय)। पिता का नाम बिंदुसार। दादा का नाम चंद्रगुप्त मौर्य। माता का नाम सुभद्रांगी। पत्नियों का नाम देवी (वेदिस-महादेवी शाक्यकुमारी), कारुवाकी (द्वितीय देवी तीवलमाता), असंधिमित्रा (अग्रमहिषी), पद्मावती और तिष्यरक्षित। पुत्रों का नाम- देवी से पुत्र महेन्द्र, पुत्री संघमित्रा और पुत्री चारुमती, कारुवाकी से पुत्र तीवर, पद्मावती से पुत्र कुणाल (धर्मविवर्धन) और भी कई पुत्रों का उल्लेख है। धर्म- हिन्दू और बौद्ध। राजधानी पाटलीपुत्र। सम्राट अशोक का नाम संसार के महानतम व्यक्तियों में गिना जाता है। ईरान से लेकर बर्मा तक अशोक का साम्राज्य था। अंत में कलिंग के युद्ध ने अशोक को धर्म की ओर मोड़ दिया। अशोक ने जहां-जहां भी अपना साम्राज्य स्थापित किया, वहां-वहां अशोक स्तंभ बनवाए। उनके हजारों स्तंभों को मध्यकाल के मुस्लिमों ने ध्वस्त कर दिया। अशोक के समय मौर्य राज्य उत्तर में हिन्दुकुश की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के दक्षिण तथा मैसूर, कर्नाटक तक तथा पूर्व में बंगाल से पश्चिम में अफगानिस्तान तक पहुंच गया था। यह उस समय तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य था।
अशोक महान ने बौद्ध धर्म का प्रचार भारत के अलावा श्रीलंका, अफगानिस्तान, पश्चिम एशिया, मिस्र तथा यूनान में भी करवाया। बिंदुसार की 16 पटरानियों और 101 पुत्रों का उल्लेख है। उनमें से सुसीम अशोक का सबसे बड़ा भाई था। तिष्य अशोक का सहोदर भाई और सबसे छोटा था। भाइयों के साथ गृहयुद्ध के बाद अशोक को राजगद्दी मिली।
आर्यभट्ट
आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री रहे हैं। उनका जन्म 476 ईस्वी में बिहार में हुआ था। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय से पढाई की। उनके मुख्य कार्यो में से एक “आर्यभटीय” 499 ईस्वी में लिखा गया था। इसमें बहुत सारे विषयो जैसे खगोल विज्ञान, गोलीय त्रिकोणमिति, अंकगणित, बीजगणित और सरल त्रिकोणमिति का वर्णन है। उन्होंने गणित और खगोलविज्ञान के अपने सारे अविष्कारों को श्लोको के रूप में लिखा। इस किताब का अनुवाद लैटिन में 13वीं शताब्दी में किया गया। आर्यभटीय के लैटिन संस्करण की सहायता से यूरोपीय गणितज्ञों ने त्रिभुजो का क्षेत्रफल, गोलीय आयतन की गणना के साथ साथ कैसे वर्गमूल और घनमूल की गणना की जाती है, ये सब सीखा।
खगोल विज्ञानं के क्षेत्र में, सर्वप्रथम आर्यभट ने ही अनुमान लगाया था कि पृथ्वी गोलाकार है और ये अपनी ही अक्ष पर घूमती है जिसके फलस्वरूप दिन और रात होते हैं। उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला था कि चन्द्रमा काला है और वो सूर्य की रोशनी वजह से चमकता है। उन्होंने सूर्य व चंद्र ग्रहण के सिद्धान्तों के विषय में तार्किक स्पष्टीकरण दिये थे।
कौटिल्य
कौटिल्य के अन्य नाम चाणक्य ,विष्णु गुप्त था राजनीति में भी कुटिल , नीतिज्ञ होने के कारण उनको कौटिल्य कहा जाता था। भारत में उन्होंने एक केंद्रीय शक्ति संपन्न सेना ,प्रभावशाली राज्य की स्थापना कर भारत के केंद्रीय करण में बहुत बड़ा योगदान दिया। उन्होंने एक साधारण से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को सैन्य प्रशिक्षण प्रदान कर भारत के एक महान सम्राट बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई व खुद उस राज्य के प्रधानमंत्री बने । उनका शासन भ्रष्टाचार से मुक्त था । कहा जाता है कि एक बार सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर से बातचीत करते समय उन्होंने राजकीय दीपक को जलाया परंतु राजकीय वार्ता के समाप्त होने पर समय की निजी काम हेतु राजकीय दीपक को बुझा कर अपना स्वंय का दीपक जलाया इस प्रकार वे राज्य की वस्तु का खुद के निजी कार्यों हेतु का दुरुपयोग नहीं करते थे इसको वर्तमान में भी नेताओं को अपनी दिनचर्या में अपनाकरअपना राजधर्म निभाने की जरूरत है।
कालिदास
कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे।[1] उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की और उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निरूपित हैं।
जन्म : संभवत: 150 ई.पू. से 300 ई. के बीच उज्जैन (संभवत:), भाषा : संस्कृत, विधाएँ : नाटक, कविता,
मुख्य कृतियाँ नाटक : अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोवशीर्यम् और मालविकाग्निमित्रम् महाकाव्य (कविता) : रघुवंशम् और कुमारसंभवम् खण्डकाव्य (कविता) : मेघदूतम् और ऋतुसंहार (इसके अतिरिक्त उन्हें उत्तर कालामृतम्, श्रुतबोधम्, श्रृंगार तिलकम्, श्रृंगार रसाशतम्, सेतुकाव्यम्, कर्पूरमंजरी, पुष्पबाण विलासम्, श्यामा दंडकम्, ज्योतिर्विद्याभरणम् आदि अनेक ग्रंथों का रचनाकार माना जाता है पर इस पर विद्वानों में मतभेद है।)
बाणभट्ट
जन्म स्थान - चंंदरेह (सीधी जिला )म. प्र.
बाणभट्ट सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्य लेखक और कवि थे। वह राजा हर्षवर्धन के आस्थान कवि थे। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं: हर्षचरितम् तथा कादम्बरी। हर्षचरितम् राजा हर्षवर्धन का जीवन-चरित्र था और कादंबरी दुनिया का पहला उपन्यास था। कादंबरी पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट जी का देहांत हो गया तो उपन्यास पूरा करने का काम उनके पुत्र भूषणभट्ट ने अपने हाथ में लिया। दोनों ग्रंथ संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माने जाते है
महर्षि चरक
चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विशारद के रूप में विख्यात हैं। वे कुषाण राज्य के राजवैद्य थे। इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है। इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है। आचार्य चरक ने आचार्य अग्निवेश के अग्निवेशतन्त्र में कुछ स्थान तथा अध्याय जोड्कर उसे नया रूप दिया जिसे आज चरक संहिता के नाम से जाना जाता है । 300-200 ई. पूर्व लगभगआयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है।चरक की शिक्षा तक्षशिला में हुई ।इनका रचा हुआ ग्रंथ 'चरक संहिता' आज भी वैद्यक का अद्वितीय ग्रंथ माना जाता है। इन्हें ईसा की प्रथम शताब्दी का बताते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि चरक कनिष्क के राजवैद्य थे परंतु कुछ लोग इन्हें बौद्ध काल से भी पहले का मानते हैं।आठवीं शताब्दी में इस ग्रंथ का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुंचा।चरक संहिता में व्याधियों के उपचार तो बताए ही गए हैं, प्रसंगवश स्थान-स्थान पर दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों की भी उल्लेख है।उन्होंने आयुर्वेद के प्रमुख ग्रन्थों और उसके ज्ञान को इकट्ठा करके उसका संकलन किया । चरक ने भ्रमण करके चिकित्सकों के साथ बैठकें की, विचार एकत्र किए और सिद्धांतों को प्रतिपादित किया और उसे पढ़ाई लिखाई के योग्य बनाया ।
अकबर
पूरा नाम – अबुल-फतह जलालउद्दीन मुहम्मद अकबर जन्म – 15 अक्टूबर, 1542 जन्मस्थान – अमरकोट पिता– हुमांयू माता – नवाब हमीदा बानो बेगम साहिबा
महाराणा प्रताप
पिता राणा उदय सिंह माता- जयवंता बाई जी, पत्नी- अजबदे, जन्म- 9 मई 1540 उत्तर दक्षिण भारत के मेवाड़ में हुआ था, मृत्यु- 29 जनवरी 1597, पुत्र- अमर सिंह, घोड़ा- चेतक
मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून, 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीते और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
गुरु नानक
सिखों के प्रथम (आदि गुरु) हैं।संवत् 1526 में कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन हुआ था. इस दिन को प्रकाश पर्व (Prakash Parv) के रूप में मनाया जाता है. कुछ विद्वान गुरु नानक की जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं. नानक जी का जन्म रावी नदी के किनार स्थित तलवंडी नामक गांव खत्रीकुल में हुआ था. गुरु नानक ने सिख धर्म की स्थापना की थी. गुरु नानक सिखों के आदिगुरु हैं.
गुरु अर्जन देव
श्री गुरु अर्जन देव जी (Shri Guru Arjun Dev Ji) का जन्म 18 वैशाख 7 संवत 1620 को श्री गुरु राम दास जी के घर बीबी भानी जी की पवित्र कोख से गोइंदवाल अपने ननिहाल घर में हुआ|
