कैसी थी गमनाक कहानी
कैसी थी गमनाक कहानी
दर्द में डूबा किस्सा था (2)
जिसको सुनकर बाग़ का हर गुल (2)
खून के आंसू रोया था (2)
कैसी थी गमनाक कहानी
मौत की वादी, गम का सूरज
उसका यही बस रस्ता था (2)
गली गली और कूचा कूचा
उसने सबको ढूंढा था (2)
जिसको सुनकर बाग़ का हर गुल
खून के आंसू रोया था (2)
कैसी थी गमनाक कहानी
मेरी सूली को वो उठाकर
कोहे कलवर चल पड़ा (2)
करब की राह में पत्थरों पर
वो गिरता, उठता, चलता था (2)
जिसको सुनकर बाग़ का हर गुल
खून के आंसू रोया था (2)
कैसी थी गमनाक कहानी
सब का साथी, सबका प्यारा
आज सलीब पे तन्हा था (2)
नूर का मम्बा, नूर-ए-जहाँ को
अंधियारों में रखा था (2)
जिसको सुनकर बाग़ का हर गुल
खून के आंसू रोया था (2)
कैसी थी गमनाक कहानी
तीसरे दिन जब पाक मसीह ने
कब्र का सीना फाड़ा था (2)
मौत भी ज़िन्दगी में थी बदली
मौत के सर को कुचला था (2)
जिसको सुनकर बाग़ का हर गुल
खून के आंसू रोया था (2)
कैसी थी गमनाक कहानी
