अलसी के औषधीय गुण
आयुर्वेद के अनुसार अलसी मधुर, तिप्त, गुरु, स्निग्ध, गरम, प्रकीर्ति, भारी,पाक में तीखी, वात नाशक, कफ-पित्त वर्धक, नेत्र रोग, व्रण शोथ एवं वीर्य दोषों का नाश करती है। इसका तेल मधु, वात नाशक, कुछ कसैला, स्निग्ध, उष्ण, कफ़ और खांसी नाशक, पाक में चरपरा और नेत्रों के लिए हानिकारक है।
यूनानी मतानुसार अलसी गर्म होती है। यह खांसी, गुर्दे की तकलीफों में, कामोद्दीपक, दुग्धवर्धक, मासिक धर्मनियामक, व्रण, दाद एवं रक्तस्राव में लाभकारी है।
वैज्ञानिक मतानुसार अलसी के रासायनिक तत्वों का विश्लेषण करने पर ज्ञात हुआ है कि इसके बीजों में 35-45 प्रतिशत तक स्थिर तेल होता है। इस तेल में लाइनोलिक एसिड युक्त ग्लिसरॉल का मिश्रण होता है। इसके अतिरिक्त आर्द्रता 6.6 प्रतिशत, काबॉहाइड्रेट 28.8 प्रतिशत, प्रोटीन 25 प्रतिशत, खनिज। 2.4 प्रतिशत, भस्म 3 से 5 प्रतिशत तक पाए जाते हैं। भस्म (राख) में कैल्शियम,सोडियम,पोटेसियम, मैग्नीशियम, लोहा, गंधक, फास्फोरस, आदि तत्व होते है |बीजों में एक विषाक्त ग्लूकोसाइड लिनामेरिन होता है, जो अलसी के पत्ते पते, तने, फूल, जड़ में भी मौजूद रहता है। इसके दुष्परिणाम स्वरूप इसे खाने से पशुओं पर घातक प्रभाव पड़ता है।
