सामर्थ हे तेरे

सामर्थ हे तेरे

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कैसे पहुंचे हम, क्या कोई राह है ?
पाप में डूबे खुदा तो पाक है

इस गुलामी से,
कौन है जो हमे आज़ाद करे ?
ये दिल है उसकी तलाश में

सामर्थ है तेरे लहू में
पापों को मिटा सके
बंधनो से छुड़ाकर
कर दे नया

रात छायी है, साया मौत है का
द्वार कर लो बंद, फसह पर्व है

मित्यु दंड से,
क्या है जिस से हमे बक्श मिले ?
इस घर को उसकी तलाश है

सामर्थ है तेरे लहू में
पापों को मिटा सके
बंधनो से छुड़ाकर
कर दे नया