मिट्टी के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक –

मिट्टी के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक –

bookmark

  • मृदा शब्द की उत्पति अंग्रेजी भाषा के Soil शब्द से हुई है और Soil शब्द लैटिन भाषा के Solum शब्द से बना है |

          मिट्टी के निर्माण को प्रभावित करने वाले कारक – (i)     पैतृक शैल (ii)    जलवायु (iii)   वनस्पति (iv)   भूमिगत जल (v)    सूक्ष्म जीव

मृदा

मृदा

(i)     पैतृक शैल– मिट्टी के निर्माण में पैतृक शैलों का मुख्य योगदान होता है | यह मिट्टी के एक बड़े भाग का निर्माण करता है |

  • पैतृक शैलों का निर्माण चट्टानों के अपक्षय के क्रिया के परिणामस्वरूप होता है | पैतृक शैल से आधारभूत खनिज और पोषक तत्व प्राप्त होता है |

(ii)    जलवायु – जलवायु में तापमान और वर्षण को शामिल किया जाता है | अधिक      तापमान में मिट्टी की रासायनिक क्रिया तेज हो जाती है जबकि कम तापमान में    मिट्टी की रासायनिक क्रिया कम हो जाती है, अर्थात् मिट्टी का विकास बाधित होता        है |

  • मिट्टी में सूक्ष्म जीव अर्थात् जीवाणु औरकवक पाये जाते हैं | तापमान के बहुत अधिक अथवा बहुत कम होने की स्थिति में सूक्ष्म जैविक क्रिया प्रभावित होती है| सम तापमान होने पर सूक्ष्म जैविक क्रियाएं निरन्तर चलती रहती हैं |
  • किसी क्षेत्र में जब मूसलाधार वर्षा होती है, तो निक्षालन क्रिया प्रभावित हो जाती है |
  • निक्षालन – जहाँ अधिक वर्षा होती है, वहां की मिट्टी के खनिज पदार्थ तथा पोषक तत्व रिस-रिसकर निचले स्तर में पहुँच जाते हैं | इसे हम निक्षालन क्रिया कहते हैं |
  • निक्षालन क्रिया से मिट्टी के खनिज पदार्थ निचले सिरे में चले जाते हैं| परिणामस्वरूप ऊपर की परत अनउर्वरक हो जाती है, अर्थात् उर्वरक क्षमता काफी घट जाती है | उदाहरण के लिए– निक्षालन क्रिया के द्वारा ही केरल में लैटेराइट मिट्टी का निर्माण हुआ है |
  • लैटेराइट एक निक्षालित मिट्टी है|लैटेराइट मिट्टी खाद्यान्नों के लिए उपयुक्त नहीं होती है, इसलिए केरल में पेय पदार्थ- चाय, कॉफी, नारियल, रबर और मसालों आदि की खेती अधिक मात्रा में होती है |
  • शुष्क क्षेत्रों में वाष्पीकरण क्रिया अधिक होती है | वाष्पीकरण अधिक होने से भूमिगत जल में केशिका क्रिया प्रारम्भ हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप राजस्थान जैसे क्षेत्रों में भूमि के ऊपरी परत में चूना अर्थात् कैल्शियम जैसी परत बिछ जाती है, जिससे मिट्टी अनउपजाऊ हो जाती है |इस प्रकार अधिक वर्षा तथा अधिक तापमान के कारण जलवायु मिट्टी को प्रभावित करती है |

(iii)   वनस्पति- वनस्पतियाँ मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा का निर्धारण करती हैं |

  • मृदा में विद्यमान विघटित जैविक पदार्थ जिसकी उत्पति वनस्पतियोंतथा जन्तुओं के सड़ने-गलने से होती है | इस प्रकार की मिट्टी में ह्यूमस की मात्रा अधिक पायी जाती है | उदाहरण के लिए – पर्वतीय क्षेत्रों में वनस्पतियों के कारण ही यहाँ मिट्टी में अधिक ह्यूमस पाया जाता है |

(iv)   भूमिगत जल – जल मृदा का एक मुख्य घटक है| जल की मात्रा का प्रभाव मृदा की उर्वरकता पर पड़ता है | जल की मात्रा से मिट्टी के रासायनिक तत्व भी प्रभावित होते हैं | (v)    सूक्ष्म जीव :- सूक्ष्म जीव मृदा में वनस्पतियों एवं जीवों के अवशेषों को सड़ा-गलाकर अर्थात् वियोजित कर खनिजों एवं जैविक पदार्थों को अलग करते हैं और मिट्टी में ह्यूमस का निर्माण करते हैं |

मृदा संगठन

मृदा मुख्य रूप से 5 तत्वों से मिलकर बनी है – (i)     खनिज पदार्थ – 40-45% (ii)    ह्यूमस या कार्बनिक पदार्थ – 5-10% (iii)   मृदा जल – 25% (iv)   मृदा वायु – 25% (v)    सूक्ष्मजीव – कवक और जीवाण

Soil composition

Soil composition

  • ह्यूमस – मृदा में वनस्पतियों और जीवों के सड़े-गले अवशेषों को या जैविक पदार्थों को ह्यूमस कहते हैं | ह्यूमस निर्माण में कवक और जीवाणु की भूमिका होती है |
  • मृदा परिच्छेदिका :- किसी मृदा की सतह से लेकर उसकी मूल चट्टान तक के मृदा स्तरों का एक उर्ध्वाधर खण्ड मृदा परिच्छेदिका कहलाता है |
  • मृदा परिच्छेदिका में मुख्य रूप से चार संस्तर होते हैं | चारों संस्तर में जो सबसे ऊपरी परत होती है वह अधिक उपजाऊ होती है | पौधों की जड़े पहली संस्तर में ही फैली होती हैं|

मृदा

मृदा