
जो बारिश नहीं हुई

एक दिन एक गरीब किसान सम्राट अकबर के दरबार में फरियाद लेकर आया।
उसने कहा, “जहाँपनाह, इस साल बारिश नहीं हुई। मेरी फसल बर्बाद हो गई। आप मेरे सम्राट हैं — मुझे मुआवज़ा दीजिए।”
अकबर चौंक गए और बोले, “लेकिन मैं तो बारिश नहीं ला सकता! आकाश मेरे वश में नहीं है।”
दरबार में हलचल मच गई। कुछ दरबारी किसान पर हँसने लगे।
तभी बीरबल उठे और बोले,
“अगर अनुमति दें, तो मैं इस किसान की बात में छुपे सच को उजागर करूं।”
अकबर ने इशारा किया — “बोलो।”
बीरबल ने कहा,
“जहाँपनाह, जब किसान की फसल लहलहाती है, तब हम राज्य की नीतियों, व्यवस्था, और प्रशासन का श्रेय लेते हैं — यह कहते हुए कि यह हमारी सूझबूझ और देखभाल का नतीजा है।
तो फिर जब बारिश न हो, फसल ना उगे — तब हम यह क्यों कहते हैं कि यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं है?”
दरबार में सन्नाटा छा गया।
बीरबल आगे बोले,
“किसी भी नेतृत्व की असली परीक्षा तभी होती है जब हालात कठिन हों।
श्रेय लेना आसान है, लेकिन दोष को स्वीकार करना ही सच्चे नेतृत्व की पहचान है।”
अकबर ने किसान की ओर देखा — फिर बीरबल की बातों पर विचार करते हुए कहा,
“सच कहा बीरबल। इस किसान को सहायता मिलेगी — क्योंकि राज्य का कर्तव्य सिर्फ उत्सव मनाना नहीं, संकट में साथ देना भी है।”
नीति: श्रेय तभी लो जब तुम दोष उठाने का भी साहस रखते हो।
नेतृत्व सिर्फ अच्छे दिनों का नहीं — बुरे दिनों की ज़िम्मेदारी उठाने का नाम है।