मौन मंत्री

मौन मंत्री

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एक दिन सम्राट अकबर अपने दरबार में चिंतन कर रहे थे। उन्होंने ध्यान दिया कि एक मंत्री, जो लंबे समय से दरबार का हिस्सा था, अक्सर बैठकों में मौन रहता था। न सलाह देता, न किसी विषय पर अपनी राय रखता।

अकबर ने आश्चर्य से बीरबल से पूछा,
“बीरबल, वह मंत्री हमेशा चुप क्यों रहता है? क्या उसका मौन बुद्धिमानी है, या वह सिर्फ डरपोक है?”

बीरबल मुस्कराए और बोले, “जहाँपनाह, कभी-कभी मौन बोलने से ज़्यादा कुछ कहता है। लेकिन चलिए, इसकी परीक्षा कर लेते हैं।”

अगली सभा में, बीरबल ने उसी मंत्री को एक जटिल पहेली दी — एक राजनैतिक समस्या जिसमें निष्पक्षता, तर्क और गहरी समझ की आवश्यकता थी। पूरे दरबार की नज़रें उस मंत्री पर टिक गईं।

मंत्री ने बिना कोई हलचल किए, चुपचाप सोचकर जवाब लिखा और बीरबल को सौंप दिया। उत्तर इतना स्पष्ट, संतुलित और चतुर था कि बीरबल मुस्कुराए और अकबर से बोले,
“जहाँपनाह, यह वही मौन है जो बुद्धिमत्ता की रक्षा करता है। यह मंत्री बोलता कम है, पर सोचता बहुत है।”

अकबर ने प्रसन्न होकर सिर हिलाया और उस मंत्री की समझदारी की सराहना की।

नीति: शांत जल सबसे गहरा होता है — मौन को कभी मूर्खता न समझो।
        कुछ लोग कम बोलते हैं, क्योंकि उनके विचार ज़्यादा मजबूत होते हैं।