
मौन का उपहार

एक दिन सम्राट अकबर ने अपने दरबारियों को एक अनोखी चुनौती दी।
उन्होंने कहा,
"ऐसा उपहार लाओ जो सबसे कम बोले, लेकिन सबसे ज़्यादा अर्थ रखता हो।"
सभी दरबारी सोच में पड़ गए। अगले दिन दरबार में एक से एक महंगे और अनोखे उपहार आए — किसी ने कविता की किताब दी जिसमें भाव छिपे थे, किसी ने संगीत का यंत्र भेंट किया, तो किसी ने चित्रकला से सजे गहरे संदेश वाले चित्र।
फिर बारी आई बीरबल की।
बीरबल एक सादी सी लकड़ी की डिब्बी लेकर दरबार में आए। जब अकबर ने उसे खोला, तो अंदर कुछ नहीं था — वह पूरी तरह खाली थी।
दरबार में हल्की-सी फुसफुसाहट हुई।
अकबर ने पूछा,
"बीरबल, यह क्या है? इसमें तो कुछ भी नहीं!"
बीरबल ने विनम्रता से उत्तर दिया,
"जहाँपनाह, यही तो मेरा उपहार है — मौन।"
अकबर हैरान हुए, “मौन?”
बीरबल मुस्कुराए और समझाया,
"मौन वह शक्ति है जो बिना बोले बहुत कुछ कह जाता है। यह झगड़ों को रोकता है, विचारों को जन्म देता है और आत्मा को शांति देता है। जहाँ शब्द कमज़ोर पड़ते हैं, वहाँ मौन बोलता है। यही इस डिब्बे में भरा है — शांति, संयम और आत्मचिंतन का उपहार।”
अकबर कुछ क्षणों के लिए शांत हो गए। उन्होंने उस खाली डिब्बे को ध्यान से देखा, और फिर सिर हिलाते हुए मुस्कुराए।
"बीरबल, यह सबसे गहरा उपहार है।"
नीति: मौन वह भाषा है जो सबसे ज़्यादा समझ आती है।
असली समझ शब्दों में नहीं, शांति में होती है।