पंख का वज़न

पंख का वज़न

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एक दिन सम्राट अकबर के मन में एक दिलचस्प प्रश्न आया।
उन्होंने अपने दरबार में उपस्थित सभी मंत्रियों और दरबारियों से पूछा:

“बताओ, क्या ज़्यादा भारी है — एक किलो लोहा या एक किलो पंख?”

सभी दरबारी हँसने लगे।
“जहाँपनाह, दोनों बराबर हैं। एक किलो तो एक किलो ही होता है, चाहे वह लोहा हो या पंख,” उन्होंने कहा।

अकबर ने भी मुस्कुरा कर सिर हिलाया। फिर उन्होंने बीरबल की ओर देखा और पूछा,
“और तुम्हारा क्या जवाब है, बीरबल?”

बीरबल ने पहले सभी की ओर देखा, फिर शांति से बोले:
“जहाँपनाह, वजन में दोनों बराबर हो सकते हैं… लेकिन सवाल सिर्फ भार का नहीं है। क्या मैं भी एक प्रश्न पूछूं?”

अकबर ने अनुमति दी।

बीरबल ने पूछा:
“बताइए — क्या ज़्यादा भारी लगता है: एक सिक्का खो देना, या एक ऐसा अच्छा शब्द जिसे आप कभी कह ही नहीं पाए?”

पूरा दरबार चुप हो गया।
वह हलकी-फुल्की हँसी अब एक गहरे विचार में बदल चुकी थी।

बीरबल ने आगे कहा,
“सिक्का तो दोबारा मिल सकता है। लेकिन एक सच्चा, भावपूर्ण शब्द — जिसे अगर समय पर कह दिया जाता, तो शायद किसी का जीवन बदल जाता — उसका न कहा जाना हमेशा एक बोझ बनकर मन पर रह जाता है।”

अकबर ने गंभीरता से सिर हिलाया।
“तुमने फिर वही किया, बीरबल — साधारण सवाल से गहरी सीख निकाल दी।”

नीति: वज़न सिर्फ किलो में नहीं, भावना और समय के महत्व में होता है।
        जो न कहा जाए, वह सबसे भारी बन जाता है।