झूठ की क़ीमत

झूठ की क़ीमत

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एक दिन दरबार में एक व्यापारी लाया गया जो व्यापार में टैक्स देने से बच रहा था।
दरबार में जब उससे प्रश्न किया गया, तो उसने आत्मविश्वास से जवाब दिया कि वह बिल्कुल ईमानदारी से कर भरता है।

उसके जवाब में कुछ विरोधाभास थे, लेकिन उसके बोलने का तरीका इतना विश्वासभरा था कि कुछ लोग भ्रमित हो गए।

अकबर को संदेह हुआ।
उन्होंने बीरबल से पूछा:
“बीरबल, इस आदमी ने कर चोरी की है, लेकिन अभी हमें कोई ठोस सबूत नहीं मिला। बताओ, झूठ बोलने की क़ीमत क्या होती है?”

बीरबल मुस्कुराए।
वो चुपचाप उठे और अपनी जेब से एक तांबे का पुराना सिक्का निकाला।
उन्होंने वह सिक्का उस व्यापारी को देते हुए कहा:

“यह लो। तुम्हारे झूठ की यही क़ीमत है।”

व्यापारी चौंका और बोला, “बस इतना? एक तांबे का सिक्का?”

बीरबल बोले,
“हाँ, क्योंकि आज तुमने एक सच्चाई को छुपा लिया और कुछ समय के लिए खुद को बचा लिया। पर बदले में तुमने अपनी प्रतिष्ठा खो दी। अब दरबार में, और शायद पूरे नगर में, कोई तुम्हें पहले जैसा ईमानदार नहीं मानेगा। यह नुकसान अनमोल है — और उसका मोल ये तांबे का सिक्का भी नहीं चुका सकता।”

अकबर ने सिर हिलाते हुए कहा,
“बीरबल, तुमने कम शब्दों में एक बड़ा पाठ पढ़ाया है।”

नीति: झूठ बोलकर आप क्षणिक बचाव पा सकते हैं, लेकिन उसकी कीमत आपकी साख और सम्मान होती है।
        झूठ सस्ता लगता है, पर उसकी सज़ा सबसे महँगी होती है।