
खाली उपहार डिब्बा

बीरबल के जन्मदिन के अवसर पर, सम्राट अकबर ने उन्हें राजदरबार में आमंत्रित किया और दरबारियों की उपस्थिति में एक बेहद सुंदर, रेशम से सजा हुआ उपहार डिब्बा भेंट किया।
बीरबल ने सम्मानपूर्वक डिब्बा खोला — लेकिन वह डिब्बा पूरी तरह खाली था।
दरबारियों में हलचल होने लगी। कुछ हैरान हुए, कुछ मुस्कुरा दिए — क्या यह कोई मज़ाक था?
अकबर ने शरारती मुस्कान के साथ पूछा,
“बीरबल, यह मेरा उपहार है। कैसा लगा?”
बीरबल बिना ज़रा भी विचलित हुए मुस्कुराए और विनम्रता से बोले,
“जहाँपनाह, आपके हाथों से मिला कोई भी उपहार कभी खाली नहीं होता। यह डिब्बा स्नेह, आदर और आपके विचारों से भरा है — जो किसी भी कीमती वस्तु से कहीं ज़्यादा अनमोल है।”
अकबर बीरबल के इस उत्तर से बेहद प्रसन्न हुए।
उन्होंने कहा,
“बीरबल, तुम्हारे जैसे इंसान को असली उपहार शब्दों और भावनाओं में ही दिया जा सकता है।”
पूरे दरबार ने तालियाँ बजाईं — यह बीरबल की बुद्धिमत्ता और भावनात्मक समझ का एक और प्रमाण था।
नीति: एक दिल से दिया गया इशारा, सबसे महंगे तोहफे से ज़्यादा कीमती होता है।
भावना की गहराई ही उपहार की असली कीमत होती है।